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मौत उसकी है करे जिसका ज़माना अफसोस। यूं तो सभी आए हैं दुनिया में मरने के लिए। आशादेवी तेजराज जैन — सेवा, संस्कार और आस्था की बेमिसाल शख्सियत*

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*मौत उसकी है करे जिसका ज़माना अफसोस। यूं तो सभी आए हैं दुनिया में मरने के लिए। आशादेवी तेजराज जैन — सेवा, संस्कार और आस्था की बेमिसाल शख्सियत*

*कभी-कभी एक जीवन, समाज और पूरी पीढ़ियों और आने वाली नस्लों के लिए प्रेरणा बन जाता है, आशादेवी इसी की मिसाल है*
बुरहानपुर (इक़बाल अंसारी) गत दिवस इंदिरा कॉलोनी स्थित जैन समाज की आशा देवी तेज राज जैन नामक एक बेमिसाल महिला ने इस दुनिया को अलविदा कहा: जिस पर किसी शायर का यह शेर पूरा फिट बैठता है कि: *मौत उसकी है करे जिसका ज़माना अफसोस।* *यूं तो सभी आए हैं दुनिया में करने के लिए।*। ऐसी ही बे मिसाल शख्शियत की मालिक थीं पूज्य श्रीमती आशादेवी तेजराजजी जैन: — सादगी, सेवा और संस्कारों की जीवित प्रतिमूर्ति।

सन 1931 में राजस्थान के जोधपुर ज़िले के छोटे से गाँव अरटिया में उनका जन्म हुआ। बचपन से ही उनमें धैर्य, करुणा और सेवा का भाव झलकता था। मात्र सोलह वर्ष की आयु में उनका विवाह बुरहानपुर ज़िले के बोरसल गाँव में श्री तेजराज जी जैन से हुआ। उस समय घर में कोई महिला सदस्य नहीं थी, पर आशादेवी जी ने अपने स्नेह, संयम और कर्तव्य से पूरे परिवार को एक सूत्र में बाँध दिया।

नई भाषा, नया परिवेश — सब कुछ अपरिचित था, पर उन्होंने हर चुनौती को मुस्कान से स्वीकार किया। उन्होंने मराठी सीखी, गाँव की परंपराओं को अपनाया और सबकी “बाई” बन गईं। उनकी सरलता, सेवा-भाव और सौम्यता ने हर दिल में स्थान पाया।

उन्होंने सैकड़ों महिलाओं की प्रसूति कराई, बीमारों की सेवा की और हर ज़रूरतमंद के दुख-दर्द में साथ रहीं।
वे कहा करती थीं —

> “जीना भी इबादत है, अगर उसमें सेवा और संतोष हो।”

 

उनका जीवन धर्म और सकारात्मकता से भरा था। वे हर दिन नवकार मंत्र की माला फेरतीं और समायिक को अपना जीवन-नियम मानतीं। उनके चेहरे की शांति और वाणी की मधुरता से हर व्यक्ति प्रभावित होता था।

सन 1999 में जब तेजराज जी की तबीयत बिगड़ी, तो वे बुरहानपुर आ गईं। यहाँ भी उन्होंने धर्म और समाजसेवा का मार्ग जारी रखा। 2003 में जब तेजराज जी ने संथारा लिया, तो उन्होंने पूर्ण श्रद्धा और संतोष से अपनी सहमति दी — यह उनके गहन धार्मिक विश्वास का प्रमाण था।

कुछ महीने पहले परिवार ने उनका स्वर्ण सिडी समारोह बड़े गर्व और स्नेह से मनाया था।
और जीवन के अंतिम अध्याय में उन्होंने मानवता की अनुपम मिसाल पेश की — नेत्रदान और देहदान।
उन्होंने अपनी आँखें एम.के. इंटरनेशनल आई बैंक, इंदौर को और शरीर नंदकुमार सिंह चौहान मेडिकल कॉलेज, खंडवा को दान किया।
मध्यप्रदेश शासन ने उनके इस महान कार्य के लिए उन्हें “गार्ड ऑफ ऑनर” से सम्मानित किया — यह सम्मान उनके निस्वार्थ जीवन की पहचान बन गया।

उनके अंतिम दर्शन में सैकड़ों लोग उमड़े। हर किसी की आँखों में आँसू थे, पर मन में गर्व और फ़ख्र भी — क्योंकि उन्होंने एक ऐसी आत्मा को जाना था जिसने अपना पूरा जीवन सेवा और श्रद्धा को समर्पित किया।

वे अपने पीछे स्नेह और संस्कारों से भरा परिवार छोड़ गईं —
पुत्र श्री ओमप्रकाश जैन, बहू श्रीमती तारादेवी जैन, पौत्र महावीर और ललित जैन, पौत्रवधुएँ ममता और रीना जैन, पोती वनिता (कुशल जैन, अकोला) तथा प्रपौत्र-प्रपौत्रियाँ निशिका, गेहना, मन और उदय।

उनकी स्मृतियाँ और यादें आज भी हर दिल को सुकून और संतोष देती हैं।
उन्होंने सिखाया कि सच्ची संपत्ति धन नहीं, बल्कि सेवा, श्रद्धा और संस्कार हैं।
आशादेवी जी की मुस्कान और उनके जीवन के मूल्य सदैव ही घर परिवार के सदस्यों को मार्गदर्शन देते रहेंगे। ऐसी महान पुण्य आत्मा को नम आंखों से भावपूर्ण श्रद्धांजलि। बुरहानपुर के वरिष्ठ कर सलाहकार ललित ओ जैन ने बताया कि उनकी दादी स्वर्गीय आशा देवी 94 वर्ष की थी। उनकी पहले से ही आँखें दान और अंगदान की इच्छा थी, जिस का पालन परिवार के सदस्यों में बेटे ओम प्रकाश और पोतों ने किया। यह कदम आज के समय में सेवा, मानवहित की एक अनूठी मिसाल है।

रोटरी क्लब बुरहानपुर के सहयोग से दिवंगत का पार्थिव शरीर खंडवा कॉलेज को मेडिकल रिसर्च के लिए समर्पित किया गया, जिससे भविष्य में अनेक चिकित्सक तैयार होंगे और जीवन लाभान्वित होंगे।

देहदान के महान संकल्प को देते हुए एसपी बुरहानपुर के माध्यम से दिवंगत को गार्ड ऑफ ऑनर प्रदान किया, जो उनके जीवन मूल्यों और परिवार की सामाजिक प्रतिबद्धता का उच्च सम्मान है।

कर सलाहकार श्री ललित जैन ने बताया कि देहदान और नेत्रदान एक ऐसा पुण्य कार्य है, जो मृत्यु के बाद भी जीवन बांटता है।
रोटरी क्लब सभी समाजजनों से आह्वान करता है कि अधिक से अधिक लोग अंगदान, नेत्रदान व देहदान जैसे पवित्र संकल्प अपनाएं, जिससे मानवता का दीप निरंतर प्रज्वलित रहे।

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