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मध्यप्रदेश के पत्रकारों को राजस्थान पुलिस द्वारा हिरासत में लेने पर मोहन सरकार की उदासीनता चिंताजनक*

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*मध्यप्रदेश के पत्रकारों को राजस्थान पुलिस द्वारा हिरासत में लेने पर मोहन सरकार की उदासीनता चिंताजनक*

भोपाल(इक़बाल अंसारी) प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स पंजीकृत के संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर सैयद खालिद कैस एडवोकेट भोपाल ने गत दिनों राजस्थान पुलिस द्वारा मध्य प्रदेश के दो पत्रकारों आनंद पांडेय और हरीश दिवेकर की गिरफ्तारी की तीखी निंदा करते हुए उनकी गिरफ्तारी की प्रकिया पर खेद जताया है।
डॉक्टर सैयद खालिद कैस ने कहा कि एक ओर देश का सर्वोच्च न्यायालय आलोचनात्मक टिप्पणी को अपराध नहीं मानता है । गत दिनों देश की सर्वोच्च न्यायालय ने आलोचनात्मक टिप्पणी करने पर गिरफ्तार किए गए पत्रकार के मामले में देश भर के पुलिस महानिदेशकगण को, सरकारों को निर्देशित किया है। वहीं इस निर्देश के दो तीन बार राजस्थान पुलिस द्वारा मध्य प्रदेश के क्रांतिकारी पत्रकारों को गिरफ्तार करना एक ओर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की अवमानना है दूसरी ओर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार प्राप्त अधिकारों का उल्लंघन है। सवाल पूछना यदि अपराध होता है तो सभी पत्रकारों के लिए यह असुरक्षा का माहौल असंवैधानिकता की तरफ बढ़ रहा है।

पत्रकारिता पर माफियाओं सहित राजनेताओं के दखल एवं अतिक्रमण का परिणाम है कि स्वतंत्र पत्रकारिता का अस्तित्व निरन्तर अपना महत्व खोता जा रहा है। पत्रकारिता के सिस्टम में चाटुकारिता की लगी दीमक ने निष्पक्ष पत्रकारिता का क्षरण कर दिया है। कारपोरेट जगत के बढ़ते प्रभाव का परिणाम है कि अब पत्रकारिता जनता की आवाज़ के स्थान पर धनबल का आधार बन गई है। सत्ता के इर्द-गिर्द घूमने वाले पत्रकारों ने पत्रकारिता के स्तर को रसातल तक पहुँचा दिया है। इस सबके बावजूद भी यदि हम कहें कि पत्रकारिता स्वतंत्र है तो यह केवल भ्रम मात्र होगा। साथियों यह कटु सत्य है कि हमारी पत्रकार बिरादरी भूमाफिया खनन माफिया रेत माफिया, अपराधियों से अधिक सफेद पोश राजनेताओं की गंदी राजनीति के शिकार हुए हैं। भ्रष्टाचार और घोटाले उजागर करने वाले हमारे सैकडों पत्रकारों ने अपने कर्त्तव्य निर्वाहन में अपने प्राणों की आहुति दी है। हमारे हजारों पत्रकारों के खिलाफ हुई झूठी एफ आई आर इसका प्रमाण है कि सच उजागर करने के बदले पत्रकारों को किस प्रकार प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है। जब हमारे पत्रकार अपने प्राणों की चिंता छोड़कर कर्तव्य निर्वहन कर रहे थे, तब भी ऐसे समय में हमारे पत्रकारों को प्रताड़ना झेलनी पढ़ी है।

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि पत्रकारों के अधिकारों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (a) के तहत संरक्षित किया गया है। केवल इसलिए कि एक पत्रकार के लेखन को सरकार की आलोचना के रूप में माना जाता है, लेखक के खिलाफ़ आपराधिक मामले नहीं लगाए जाने चाहिए।

सत्ता के विरुद्ध आवाज़ उठाना अपराध माना जा रहा है। ताज़े मामले में राजस्थान पुलिस द्वारा मध्य प्रदेश के दो पत्रकारों सर्वश्री आनंद पांडेय और हरीश दिवेकर की गिरफ्तारी इसी का प्रमाण है। पत्रकार के द्वारा सवाल पूछना उसका कर्तव्य है। यदि सवाल पूछने की कीमत गिरफ्तारी बन जाए, तो भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का क्या होगा ? यह दो पत्रकारों की गिरफ्तारी का मामला नहीं, बल्कि संविधान की साख और लोकतंत्र की आत्मा की परीक्षा है।

प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स पंजीकृत ने मध्य प्रदेश के क्रांतिकारी पत्रकारों की राजस्थान पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने की तीखी निंदा करते हुए मध्य प्रदेश सरकार को हस्तक्षेप करने की मांग की है।संगठन द्वारा इस संबंध में प्रेस कौंसिल ऑफ इंडिया को पत्र लिखकर जांच की मांग की तथा पत्रकारों को न्याय एवं सुरक्षा की मांग की है।

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