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शासन जनजातियों का जीवन सरल बनाने के लिए प्रयासरत, जाकीर की कलम”

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“शासन जनजातियों का जीवन सरल बनाने के लिए प्रयासरत, जाकीर की कलम”

 

“शासन जनजातियों को वनाधिकार प्रदान कर जनजातियों का जीवन सरल बनाने के लिए प्रयासरत,

एसडीएम अर्पित गुप्ता बैहर”

 

“बालाघाट:” “अनूसूचित जनजातीयों को यू ही न समझो, विश्व के कई देशों में कर रहे प्रकृति की रक्षा, मित्र हैं जल, जमीन, जंगल के करते रहेंगे अंतिम सांस तक प्रकृति की, जी जान से सुरक्षा” जिस कारण भारतीय कानून जो की वन में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों “एसटी” के साथ ही अन्य पारंपरिक वन निवासियों “ओटीएफडी” को वन संसाधनों पर जनजातियों के पारंपरिक अधिकारों को मान्यता देता है। जिसे संज्ञान में रख दक्षिण बैहर जिला बालाघाट के लगभग बारह ग्रामों के जनजातीय सामाजिक प्रमुखों ने एक साथ मिलकर ग्राम घुम्मुर में सामुदायिक तथा जंगल के संसाधनों पर वनाधिकार प्राप्त करने हेतु वनाधिकार अधिनियम के तहत फार्म ख व फार्म ग भरकर अधिकार प्राप्ति हेतु सार्थक संवाद किया। जिसमें स्थानीय राजस्व ग्रामों को विस्थापित करने जैसी भ्रामक अफ़वाहों के संबंध में उपमंडल अधिकारी बैहर से दूरभाष पर चर्चा की गई। ग्रामीणों के साथ ही उपमंडल अधिकारी अर्पित गुप्ता ने जनजातीय समाज सेवक प्रमुखों को आश्वस्त कराते हुए कहा कि इस तरह की भ्रामक जानकारियों से बचें, चुकी शासन जनजातियों को वनाधिकार प्रदान कर जनजातियों का जीवन सरल बनाने के लिए प्रयासरत हैं।

चुकी वन अधिकार अधिनियम के तहत जंगल के संसाधनों पर अधिकार प्राप्त करने के लिए, ग्राम सभा की ओर से सामुदायिक वन अधिकारों हेतु फार्म ख और सामुदायिक वन संसाधन अधिकार हेतु फार्म ग भरकर दावे प्रस्तुत किए जाते हैं। दावों की जांच ग्राम सभा, के बाद उपखंड स्तर, और आखरी कड़ी में जिला स्तर पर किया जाता है, जिस से वन निवासियों को उनके पारंपरिक अधिकारों के लिए मान्यता मिलती है। चुकी जिन्होंने सदियों से वनों पर अपनी आजीविका और निवास किया है, लेकिन उनके पास कानूनी मालिकाना हक नहीं था। उक्त ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने और वन संसाधनों पर समुदायों के अधिकारों को बहाल करने के लिए पारित किया गया था। फार्म ख और फार्म ग का उपयोग वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत, सामुदायिक वन अधिकारों के लिए फार्म ख और सामुदायिक वन संसाधन अधिकार “सामुदायिक वन संसाधन अधिकार” के लिए फार्म ग का प्रयोग किया जाता है। यदि दावा स्वीकृत हो जाता है, तो वन निवासियों को जंगल के संसाधनों पर व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकार मिल जाते हैं। जो कि अधिकारों का दायरा वन अधिकार अधिनियम के तहत, वन निवासियों को खेती की भूमि पर मालिकाना हक और वन संसाधनों जैसे लकड़ी, फल, शहद, जड़ी-बूटियाँ आदि पर सामुदायिक अधिकार मिलते हैं, साथ ही यह अधिनियम वन समुदायों को वन भूमि के संरक्षण और प्रबंधन में भागीदारी का अधिकार भी देता है, जिससे वन शासन को लोकतांत्रिक बनाने में मदद मिलती है, और जनजातीय समाज को मालिकाना हक, इसे भारत सरकार का सहरानिय कार्य कहना भी गलत नही होंगा।

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